अब काहे करूँ श्रृंगार
जब पिया नहीं आये
रिमझिम रिमझिम बरसे बादर
पर सावन मन नहीं भाये
अब काहे करूँ श्रृंगार
जब पिया नहीं आये
जोहत ही नित बाट में
अब केहू केहू से पूछे
लागी बागन में अब
तो पिहू पिहू कोयलिया कूके
संगीत गूँज उठिल चहुँ दिशा
पर कैसे ये मन गाये
अब काहे करूँ श्रृंगार
जब पिया नहीं आये
अब काटन को नित दौड़त है
ये कुमकुम और ये बिंदिया
पाँवों में अंकुश लागत है
ये पायल और ये बिछिया
दिन तो कुरस होते बा
रजनी ने खोयी निंदिया
इस कोरी सी तन्हाई में
अब कैसे निंदिया आये
अब काहे करूँ श्रृंगार
जब पिया नहीं आये
बह बह के आंसूअन की धारा
अब ये नदिया सुखी जाए
विरह अनल की जो उठती
वो तन मन नित जलाये
बह गए वो सारे काजर कारे
अँखियाँ ये सूजी जाए
अब काहे करूँ श्रृंगार
जब पिया नहीं आये
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